कृष्ण करे तो लीला और राम करे तो पाप..

AMAR TIMES न्यूज़ से
संदीप भाटिया की रिपोर्ट

यूं तो यह एक बहुत ही पुरानी कहावत है लेकिन इन दिनों एन०आई०टी० फरीदाबाद की बहुचर्चित एक संस्था के मामले में पूरी तरह से चरितार्थ होती दिखाई दे रही है। गौरतलब है कि एन०आई०टी० फरीदाबाद के तिकोना पार्क स्थित श्री राम जी चैरिटेबल हॉस्पिटल सोसाइटी का मुद्दा कई कारणों से काफी गर्म है और एक तरह से विगत कुछ दिनों से समाचारों की सुर्खियों में बना हुआ है। आपको बताते चलें कि श्री राम जी चैरिटेबल हॉस्पिटल सोसाइटी शहर की जनता के सेवार्थ खोला गया एक अस्पताल है और कि अपने पदाधिकारियों में तालमेल के अभाव के चलते आरंभ के दिनों से ही विवादों में फंसा रहता आया है। पूर्व में रही प्रबंधन कमेटियों के समय से ही संस्था के सदस्यों में आपसी खींचतान चली आती रही है। भले ही इस संस्था को किसी के द्वारा भी चलाया जाता रहा लेकिन सदैव ही एक पक्ष पर दूसरे पक्ष द्वारा इल्ज़ाम लगाने और प्रशासनिक कार्रवाईयां करवाने का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा है। प्रशासनिक शिकायतें, प्राथमिकियां दर्ज करवाना और कभी वाद दायर करवाना तो मानो इस संस्था को विरासत में मिला है।
श्री राम जी चैरिटेबल हॉस्पिटल सोसाइटी नामक इस संस्था की बुनियाद रखने का कार्य मुख्यत: चार समाजसेवियों रोशन लाल गेरा, स्व० कन्हैया लाल खत्री, स्व० बृज मोहन भाटिया और एस०एम० हाशमी द्वारा किया गया और कि जिन्हें संस्था को पंजीकृत करवाने के समय संस्थापक सदस्यों के रूप में दिखाया गया है। पंजीकरण के समय लगाए गए संस्था के बायलॉज़ की यदि मानें तो किसी भी संस्थापक सदस्य को संस्था से उसके जीवन काल में बाहर नहीं किया जा सकता है, जबकि वर्तमान में रोशन लाल गेरा और एस०एम० हाशमी को हटा दिया गया है। नियमानुसार किसी भी संस्था के पंजीकरण के समय कम से कम 9 सदस्यों का संस्था में सदस्य होना आवश्यक रहता है, अतः इस संस्था में भी गिनती पूरी करने के लिए जितेंद्र भाटिया, कंवल खत्री, शेखर वाजपयी, कुलदीप डोगरा और सरदार शेर सिंह जी को जोड़ लिया गया था और संस्था को वर्ष 1999 में पंजीकृत करवा लिया गया। शुरुआत के कुछ समय तक संस्था ने बखूबी कार्य किए और फरीदाबाद के गरीब एवं जरूरतमंद मरीज़ों के लिए एक वरदान साबित हुई लेकिन कुछ समय बाद ही पदाधिकारियों की आपसी रंजिशों या कि फिर उनके अहम के चलते संस्था की कार्यशैली प्रभावित होना शुरू हुई और जिसका खमियाज़ा यहां आने वाले मरीज़ों को उठाना पड़ा। 
संस्था के संस्थापक सदस्य ही दो गुटों में बंट गए और एक दूसरे के विरुद्ध प्रशासन में शिकायतें देना आरंभ कर दिया। संस्था में कभी ड्रग इंस्पेक्टर के छापे डलवाए गए, तो कभी चुनावी प्रक्रिया में गड़बड़ी के आरोप प्रत्यारोप लगाए जाते रहे। कभी हिसाब किताब में गड़बड़ी के आरोप लगे, तो कभी गलत तरीके से दुकान को पट्टे पर उठाने के इल्ज़ाम लगाए गए। एक समय तो ऐसा भी आया था कि जब शिकायतों के चलते संस्था से रातों-रात मरीजों को स्थानीय सिविल अस्पताल व अन्य जगह स्थानांतरित तक करना पड़ा था।
विवाद इतना बढ़ा कि कोर्ट कचहरी तक करनी पड़ी, ऐसे में कई मौकापरस्त लोगों ने अपनी रोटियां तक इन विवादों के चलते सेक डालीं। वर्ष 2012 में दो धड़ों में बटी संस्था के पदाधिकारियों का विवाद इतना गहरा गया की संस्था के कुछ एक पदाधिकारियों को तो जेल यात्रा तक करनी पड़ी। वर्ष 2013 में किसी तरह से बीच-बचाव करते हुए संस्था को पुनर्जीवित करने का प्रयास कामयाब हुआ और दोनों पक्षों के बीच चल रहे विवाद को ही नहीं समाप्त करवाया गया अपितु दोनों पक्षों द्वारा दायर करवाए गए सभी वाद एवं शिकायतें भी वापिस करवाई गई थीं। तब इस संस्था के दोनों पक्षों ने समाजसेवी आनंद कांत भाटिया को आर्बिट्रेटर बनाए जाने पर सहमति बनाई थी और दोनों पक्षों के विवाद को समाप्त करवाने में तब उन्हीं की अहम भूमिका रही थी। सूत्रों की माने तो 5 वर्ष तक सब कुछ बिना किसी वाद विवाद के चलता रहा और कि संस्था एक बारी फिर से चलने लगी और शहर के जरूरतमंद व गरीब मरीजों को सस्ता एवं उत्तम इलाज मिलने लगा। लेकिन जैसा कि हमने ऊपर भी बताया कि इस संस्था को विवाद विरासत में मिले हैं, अतः एक बार पुनः वर्ष 2018 में संस्था में गलत तरीके से नए सदस्य बनाने, पदाधिकारियों के चुनाव किए जाने के साथ-साथ नकद भुगतान पर एक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष पर प्रश्न चिन्ह लगाए गए। सुनवाई ना होती देख उस पक्ष द्वारा संस्था के खिलाफ स्थानीय जिला रजिस्ट्रार कार्यालय में एक वाद दायर किया गया और कि जिस पर दिनांक 28/02/2020 को उस पक्ष के हक में फैसला भी जिला रजिस्ट्रार द्वारा सुनवा दिया गया। लेकिन दूसरे पक्ष ने उसकी न केवल अपील स्टेट रजिस्ट्रार के पास लगाई अपितु कोरोना काल में ही स्थानीय पुलिस प्रशासन के पास शिकायत लगाते हुए दिनांक 20/06/2020 को अस्पताल बंद करवा दिया जबकि उस समय स्थानीय लोगों को ऐसे अस्पताल की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी। इतना ही नहीं इसी संस्था में थैलेसीमिया ग्रस्त बच्चों को कोरोना काल में खून भी चढ़ाया जा रहा था लेकिन इंसानियत को त्याग इस संस्था के सभी सदस्यों ने अपने अहम के चलते हर प्रकार के किए जा रहे सेवार्थ कार्यों को त्याग संस्था पर ताला जड़वा दिया। वाद विवादों के चलते और कई प्रकार की प्रशासनिक कार्रवाईयों के चलते अंततः दिनांक 17/03/2021 को नगर निगम द्वारा इस संस्था को सील कर दिया गया। संस्था को सील किए जाने के पीछे संस्था के भवन का किया गया अवैध निर्माण, निर्माण में इस्तेमाल किए गए अनुदान का सांसद व विधायकों के कोषों से लिया जाना और सरकारी ज़मीन पर काबिज़ होने को ही मुख्य कारण बताया गया है।
इस प्रकरण पर जब हमारे संवाददाता ने जानकारी एकत्रित करनी आरंभ की तो कुछ दस्तावेज़ ऐसे भी सामने आए जिन्होंने कई प्रकार के सवालिया निशान खड़े कर दिए, जिनमें से मुख्यत: एक पत्र जो कि दिनांक 08/08/2012 को उपमंडल अधिकारी (ना०) द्वारा थाना प्रभारी कोतवाली के नाम प्रेषित किया गया था ने सबसे अधिक सवालिया निशान खड़े किए हैं क्योंकि यदि इस पत्र की मानें तो तत्कालीन एक संस्थापक सदस्य स्व० कन्हैया लाल खत्री द्वारा दूसरे संस्थापक सदस्य रोशनलाल गेरा के खिलाफ दी गई शिकायत और उस पर तहसीलदार द्वारा जांच करने और मौका मुआयना करने के बाद यह सुनिश्चित किया था कि इस टयूबवेल नं०-2 की ज़मीन पर रोशन लाल गेरा द्वारा बिना सरकारी अनुमति के एक आदद दुकान व अस्पताल जो कि श्री राम जी चैरिटेबल हॉस्पिटल सोसायटी, तिकोना पार्क एन०आई०टी० फरीदाबाद में गैर कानूनी ढंग से बनाया है। इतना ही नहीं वर्तमान में भी अस्पताल बंद होने के बाद इस संस्था के डॉक्टरों ने जो पत्र माननीय मुख्यमंत्री हरियाणा को लिखा है उसमें भी उनके द्वारा इस ज़मीन को सरकारी बताया गया है। सीएम विंडो पर लगाई गई यह शिकायत आज भी जिला रजिस्ट्रार कार्यालय में लंबित चली आ रही है।
स्थानीय नागरिक व कई सामाजिक संस्थाएं जो अब तक यह समझती आ रही थीं कि इस संस्था को बंद करवाने के पीछे कंवल खत्री गुट का हाथ ना होकर विशाल भाटिया गुट का हाथ है और जैसा कि प्रचलित भी किया जा रहा था, आज यह मानने को मजबूर हो गए हैं कि कहीं ना कहीं कंवल खत्री गुट द्वारा उन्हें गुमराह किया जा रहा था क्योंकि उन्हीं के बड़े भाई व संस्था के संस्थापक सदस्य द्वारा वर्ष 2012 में स्वयं यह माना गया था कि उक्त ज़मीन पर बना अस्पताल गैर कानूनी है और दूसरी तरफ संस्था से संबंधित कर्मचारियों व डॉक्टरों की शिकायत भी इसी ओर इशारा करती है। इन पत्रों के सार्वजनिक होने पर तो स्थानीय लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया है कि "कृष्ण करे तो लीला और राम करे तो पाप"! यानी जब कंवल खत्री गुट द्वारा रोशन लाल गेरा के खिलाफ शिकायत दी गई तब तक ज़मीन सरकारी व निर्माण अवैध था तो आज जब नगर निगम ने उसी आधार पर संस्था को सील कर दिया है तब यह कार्य अनैतिक कहा जाने योग्य कैसे है? इतना ही नहीं इस सारे प्रकरण में राजनैतिक और सामाजिक दखल भी एक तरफा दिखाई देने पर बहुत से स्थानीय लोगों का यह मानना है कि अपनी निजी मित्रता को देखते हुए गलत पक्ष का साथ देने वालों को भी वर्ष 2012 का यह पत्र सही रूप में आईना दिखाता सा प्रतीत हो रहा है।
बहरहाल दो गुटों के इन विवादों का ऊंट किस और बैठता है यह तो वक्त ही बतलाएगा लेकिन हाल फिलहाल दोनों ही पक्षों की कारगुजारियों का अंजाम जरूरतमंद व गरीब मरीज़ों को ही उठाना पड़ रहा है जो कि किसी भी हाल में सही ठहराने योग्य नहीं होगा। वहीं दूसरी ओर शहर की अन्य सामाजिक संस्थाओं और विभिन्न राजनैतिक लोगों को भी यह अवश्य सोचना होगा कि उन्हें किस प्रकार की जांच करवाने की प्रार्थना प्रशासन के पास लगानी चाहिए जिससे कि ना केवल दूध का दूध पानी का पानी हो अपितु एक बार पुनः जरूरतमंद गरीब मरीज़ों के इलाज के लिए यह संस्था भले ही किसी भी रूप में हो लेकिन कार्य करना आरंभ कर दे।

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