"धर्मार्थ के नाम पर चलने वाली संस्था बांट रही मौत?"

AMAR TIMES न्यूज़ से
 संदीप भाटिया की रिपोर्ट 
शहर की विवादित संस्था श्री राम जी चैरिटेबल हॉस्पिटल सोसाईटी के नाम आए दिन कोई ना कोई विवाद जुड़ने लगा है। शहर के एक पुराने और प्रमाणिक अख़बार ने इस संस्था द्वारा एक्सपायरी डेट की दवाईयां बांटने के मामले का खुलासा अपने अखबार के शीर्षक
के अंतर्गत किया है। अखबार की मानें तो संस्था द्वारा प्रतिबंधित टेस्ट तक यहां किए जा रहे हैं। गौरतलब है कि श्री राम जी चैरिटेबल हॉस्पिटल सोसाईटी मामला लगभग 3 वर्षों से विवादित चला आ रहा है और एक पक्ष के हक में लिखित फैसला ट्रिब्यूनल द्वारा दिए जाने और दूसरे पक्ष द्वारा उसे चुनौती देने के बावजूद अस्पताल उन्हीं लोगों के कब्ज़े में है जिन्हें एक प्रशासनिक विभाग द्वारा अपने निर्णय के तहत नाकारा जा चुका है। तमाम कोशिशों के बावजूद किसी भी संबंधित प्रशासनिक विभाग से उस पक्ष को राहत नहीं मिल सकी है जिस के हक में फैसला दिनांक 28-02-2020 को आया था।
स्थानीय लोगों की मानें तो पहले लड़ाई दो पक्षों के बीच थी और प्रशासनिक तौर पर नियमानुसार लड़ी भी जा रही थी, लेकिन जब से राजनैतिक लोगों की दख़ल इस विवाद में आरम्भ हुई तभी से यह विवाद एक अलग ही रूप लेता चला जा रहा है। स्थानीय लोगों का यह भी मानना है कि राजनेताओं को स्वयं को ऐसे विवादों से दूर रखना चाहिए। लेकिन इस मामले में उन्होंने ऐसा ना कर केवल स्वयं को ही गलत साबित किया है और अपनी पार्टी की छवि को भी खराब किया है।
वर्तमान में शहर की कई पुरानी नई और नामी-गिरामी संस्थाएं विवादित चल रही हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि संस्थाओं में दखल देकर राजनेता अपने कद का आकलन करने में लगे हुए हैं जबकि इतिहास गवाह है कि जिस भी राजनेता ने कभी भी किसी सामाजिक या धार्मिक संस्थाओं में दखल दिया है या कि एक पक्ष के हक में खड़ा रहा है उसके राजनैतिक भविष्य पर हमेशा सवालिया निशान लगते आए हैं। लोगों का यह भी मानना है कि सामाजिक संस्थाओं की आड़ में बहुत से ऐसे कार्य किए जा सकते हैं जिनमें संस्था को भले ही लाभ पहुंचे या न पहुंचे लेकिन संस्था के पदाधिकारियों और उनके आकाओं की पौ-बारह रहती है।
जब किसी भी चुनी गई सरकार के प्रशासनिक कार्यालय उस दल के नेताओं के कहने अनुसार सभी नियमों और कानूनों को ताक पर रखकर चलने लगेंगे तो भय और भ्रष्टाचार का व्याप्त होना तय है। वर्ष 2014 और सत्ता में आने से पूर्व जो नारा भाजपा ने दिया था आज फरीदाबाद शहर का जनमानस उसके ठीक विपरीत देख रहा है। आज प्रशासनिक विभागों में भ्रष्टाचार का बोलबाला है और भय का ऐसा वातावरण शहर में तैयार कर दिया गया है कि बिना राजनेताओं की दखल के आम जनमानस की कोई सुनवाई हो ही नहीं सकती। किसी भी प्रदान किए गए शिकायत प्रणाली को अपना कर देखें सुनवाई के नाम पर केवल लताड़ दी जाती है। सीएम विंडो, ग्रीवेंस कमेटी, इत्यादि सशक्त शिकायत व्यवस्थाओं की तो मानो प्रशासनिक विभागों द्वारा सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। यह बात उन से भलीभांति कौन जानता है जो इन प्लेटफार्मों पर शिकायत देते हुए गुज़र चुका है। जब राजनेता अपने लोगों के हक में फैसले छुड़वाने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों को दबाएंगे, तो उस दिए गए एक अनैतिक फैसले की आड़ में प्रशासनिक अधिकारी 10 अनैतिक कार्य और कर जाते हैं जिसके लिए कोई भी राजनेता उन्हें टोक तक नहीं सकता। यही कारण है कि आज भाजपा भय, भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देते देते भय, भ्रष्टाचार युक्त सरकार बन कर रह गई है।
आलम यह हो गया है कि लगभग सभी प्रशासनिक विभागों में उच्च अधिकारियों की पकड़ ढीली होने के कारण और राजनेताओं की दखल के चलते नीचे के अधिकारी न केवल मस्त हो चुके हैं अथवा गाहे बजाहे उन्हें सरकार की धज्जियां उड़ाते देखा जा सकता है। कई प्रशासनिक अधिकारी तो खुलेआम नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार होने की बात कहते दिखाई देते हैं। जहां राजनेताओं को अपने शीर्ष नेताओं के कथनों को करनी में परिवर्तित करना चाहिए था, वहां पर भ्रष्टाचारियों के साथ सांठगांठ करते हुए अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा करने का कार्य कर रहे हैं।
श्री रामजी चेरिटेबल हॉस्पिटल सोसाईटी मामले में यह खुलासा हुआ कि शिकायतकर्ता पक्ष द्वारा जो शिकायत उपायुक्त कार्यालय पर ग्रीवेंस कमेटी में लगवाने हेतु दी गई थी उसका विषय ही अध्यक्ष महोदय के समक्ष तोड़ मरोड़ कर कुछ इस तरह प्रस्तुत किया गया कि उन्हें यह समझाया जा सके कि शिकायतकर्ता पक्ष जनहित में चल रहे अस्पताल को बंद करवाने पर अमादा है। यह कार्य प्रशासनिक विभाग अथवा अधिकारी बिना किसी राजनैतिक दखल के नहीं कर सकते थे। इतना ही नहीं शिकायतकर्ता पक्ष के पास बैठक निकलने के बाद बैठक में हाज़िर रहने की सूचना प्रेषित करवाई गई। हद तो तब होती है जब शिकायतकर्ता को लिखित में देने के बाद अध्यक्ष ग्रीवेंस कमेटी के निर्णय से अवगत करवाया जाता है। गौरतलब है कि ग्रीवेंस कमेटी बैठक पत्रकारों द्वारा लाईव दिखाई जाती है और कि उसमें बोला गया एक-एक शब्द मायने रखता है लेकिन अधिकारी इतने निर्भीक हो चुके हैं या कि दबाव में हैं कि अध्यक्ष महोदय द्वारा बैठक में दिए गए निर्णय तक को बदल दिया जाता है।
संस्था के विवादित सदस्यों को राजनैतिक एवं प्रशासनिक सहयोग मिलने का नुकसान सीधा-सीधा फरीदाबाद की जनता को पहुंच रहा है। श्री रामजी चेरिटेबल हॉस्पिटल सोसाईटी मामले में अध्यक्ष ग्रीवेंस कमेटी के निर्णय को ना मानते हुए और राजनैतिक दबाव के चलते जिला प्रशासन ने मानों एक तरह से विवादित पक्ष को मनमानी करने का सुअवसर प्रदान कर दिया हो। यही कारण रहा कि निर्णय ना होने के बावजूद संस्था में अवैध ओपीडी चलाई जा रही है और इतना ही नहीं उसके तहत दी जा रही दवाईयां भी एक्सपायरी तिथियों की हैं। हमारे संवाददाता ने जब इस विषय पर खोज की तो जो तथ्य निकलकर सामने आए वह सही मायनों में हैरान करने वाले हैं। फिलहाल अपना नाम ना छापने की प्रार्थना के साथ श्री रामजी चेरिटेबल हॉस्पिटल सोसाईटी से अपना इलाज करवाने गए पंकज कुमार (बदला हुआ नाम) ने बतलाया कि उन्हें अपनी बीमारी बताने पर जो दवाईयां अस्पताल में मौजूद डॉक्टर एवं स्टाफ द्वारा उपलब्ध करवाई गई हैं उनमें से एक दवाई वर्ष 2020 में एक्सपायर हो चुकी है। इतना ही नहीं ओपीडी कार्ड बनवाने के लिए ₹20 लेते हुए जो दवाई देने का नियम था उसे भी दरकिनार करते हुए अस्पताल प्रशासन द्वारा दवाईयों के पैसे अलग से लिए जा रहे हैं। कार्ड में लिखी जाने वाली दवाईयों और दी जाने वाली दवाईयों में खासा फर्क भी देखा गया है।
इस खबर की जांच पड़ताल करने और तथ्यों को देखने के बाद हम सीधा-सीधा एक सवाल उठाने के लिए मजबूर हैं कि क्या यहां आवंटित की जा रही दवाईयों और चल रही अवैध ओपीडी के चलते यदि किसी भी दिन स्वास्थ्य की दृष्टि से किसी के साथ कुछ गलत हो जाता है तो उसकी नैतिक जिम्मेदारी किस पर डाली जाएगी उन राजनेताओं पर जो अपने लोगों का पक्ष लेने के लिए उन्हें अनैतिक कार्य करने की छूट दिलवा रहे हैं, उन प्रशासनिक अधिकारियों पर जो अपने आकाओं को खुश रखने के लिए उनकी हां में हां मिला रहे हैं, उन समाज के ठेकेदारों पर जो अपने मित्रों का उनके अनैतिक कार्यों के लिए सहयोग कर रहे हैं, संस्था के पदाधिकारियों पर जो विवादित भी हैं लेकिन अपने राजनैतिक रसूख के चलते अस्पताल पर कब्ज़ा किए हुए हैं या कि फिर उन मरीजों पर जो यहां सस्ती सुविधाओं और इलाज के नाम पर अपना इलाज करवाने आ रहे हैं?
यूं तो किसी भी विधानसभा अथवा लोकसभा क्षेत्र में होने वाले किसी भी अनैतिक कार्य अथवा गतिविधि पर विपक्ष कूद पड़ता है लेकिन आज इतने संवेदनशील मुद्दे को देखते हुए भी विपक्ष का सत्ताधारी पक्ष को ना घेरना उन पर भी सवालिया निशान उठाने लगा है। लोगों का मानना है कि विपक्षी लोग भी केवल राजनीति करते हैं और चुनावों के समय पर ही बाहर निकलते हैं। उन्हें पब्लिक जिए या मरे से कोई सरोकार नहीं यदि ऐसा ना होता तो क्या जिन लोगों ने इस विधानसभा में चुनाव लड़ा अथवा लड़ने की तैयारी में हैं वह शासन और प्रशासन के विरुद्ध आवाज ना उठाते?
शिकायतकर्ता पक्ष से जब इस संबंध में बात की गई तो उन्होंने स्पष्ट तौर पर यह बतलाया कि हम अपनी लड़ाई कानूनी रूप में लड़ रहे हैं और किसी प्रकार की कोई दखल नहीं दे रहे हैं। हमें जब भी स्थानीय विधायक के यहां से, किसी भी संस्थाओं के पदाधिकारियों द्वारा अथवा समाज में रसूख रखने वालों द्वारा बुलवाया गया है हमने अपना पक्ष रखते हुए केवल कानून और नियमों के हिसाब से चलने के लिए ही प्रार्थना की है। हम समय-समय पर प्रशासनिक विभागों को आगाह करते चले आ रहे हैं, हमें इंतजार है आगामी ग्रीवेंस बैठक का जिसमें हम इन सभी तथ्यों को अध्यक्ष के सामने रखेंगे। स्थानीय एवं प्रशासनिक स्तर पर यदि न्याय नहीं मिलता तो माननीय न्यायालय की शरण में जाने के लिए भी हम पूरी तरह तैयार हैं।

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